गुरुवार, 7 अगस्त 2014

जोधपुर यात्रा- 

मेहरानगढ़ एवम जसवन्त थड़ा 

बहुत समय से पश्चिमी राजस्थान के दर्शनीय स्थलों को देखने की ईच्छा थी । परन्तु विभिन्न बाध्यताओं के कारण सफ़ल नहीं हो पा रहा था । बेटी के कारण जोधपुर जाने की बाध्यता होने से ही यह सम्भव हो पाया । बेटे को भी समय मिल जाने से पूरी इकाई का साथ मिल गया । लगा कि सभी को आनन्द आयेगा । जोधपुर का सर्वप्रमुख दर्शनीय स्थल मेहरान गढ़ का किला है । हम सबने देखा । उसके पास ही जसवन्त थड़ा है । बच्चे वहां तक आते-आते थक गये । अति खूबसूरत स्थान को भी देखने में उनके थकने के कारण आनन्द सीमित हो गया । यद्यपि मैं भी थक गया था परन्तु ऐसे अवसर दुर्लभ होने के कारण थकावट को इस पर हाबी नहीं होने देना चाहता था । इसकी कुछ झलकियों से आप को रुबरु करा रहा हूं । हो सकता है कि आप भी अपने को मानसिक रुप से जोध्पुर में पायें । 
                              सबसे ज्यादा धन्यवाद राजा को जिन्होंने इन स्थलों को व्यावसायिक रुप देकर तथा आधारभूत सुविधाओं का सृजन कराकर आम जन को इससे जोड़ा है । जोधपुर जैसे शहर में इससे बहुतों को रोजगार मिला है तथा शहर की खूबसूरती को चार चांद लग गया है ।     
मेहरान गढ़ किला के बाहर से लिया गया फोटो 



 जहां राजा का दरबार लगता था 
 राजा का शयन कक्ष (बेड )
 जनानी ड्योढ़ी 

किला के ऊपर स्थित तोप 


जसवंत थड़ा 

सोमवार, 28 जुलाई 2014

थामस एल. फ़्रीड्मन लिखित "द वर्ड इज फ़्लैट" 

                                         इस पुस्तक को प्रकाशित होने के लम्बे अन्तराल के बाद मुझे इस पुस्तक के बारे में पता चलने पर मैंने इसे पढ़ा । निश्चित रुप से यह पुस्तक मेरे आज तक के पढ़े पुस्तकों में से अविस्मरणीय रुप में याद रहेगी । 
                                  इस पुस्तक को मैं आज के सभी युवाओं एवम सक्रिय लोगों के लिये आवश्यक समझता हूं । यह पुस्तक आज के जीवन को, विशेष रुप से इसके तकनीकी एवम वैश्विक आयाम को समझने में सहयोगी है । इन्टरनेट आज किस तरह से रचनात्मक एवम विध्वंसात्मक साधन के रुप में सभी को सुलभ है । आज मैनुफ़ैक्चरिंग, हार्डवेयर या साफ़्टवेयर यहां तक कि कृषि भी कैसे वैश्विक हो गयी है इसे सहजता से समझा जा सकता है । 
                                       हम सभी कैसे इसके अंग के रुप में क्रियाशील हैं । आज सुपर पावर भी विस्तृत स्तर पर युद्ध करने की नहीं सोच सकते । तकनीक और विकास जीवन के हर पक्ष पर हावी हो गया है । आज उच्च जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों पर क्यों ज्यादा धन खर्च किया जा रहा है, रिसर्च हो रहा है जबकि बहुत बड़ी संख्या में लोग मलेरिया जैसे बीमारियों से मर रहे हैं जिसपर अगर इसी शिद्दत से रिसर्च होता तो बहुत आसानी से इस पर कंट्रोल किया जा सकता है ।     

रविवार, 9 मार्च 2014

व्यक्तिगत बनाम सार्वजनिक 
                                      मैंने यह ब्लॉग किसी सोच के साथ लिखने को लेकर शुरू नहीं  किया था बल्कि यह अपने में नया अहसास महसूस करने के लिए किया था कि एक साधारण सा  व्यक्ति भी अपनी बात सार्वजनिक रूप से व्यक्त कर सकता है और लोग उसे पढ़ेंगे । यहाँ मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि मुझे अपनी बेटी की बात बहुत अच्छी लगी कि अगर विस्तृत फलक या यूं कहे कि सार्वजनिक मुद्दे की बात हमेशा व्यक्तिगत सरोकारों से ज्यादा जोड़ने वाली होती है । भले ही तात्कालिक रूप से व्यक्तिगत बात अच्छी  लगे लेकिन लम्बे समय में वह बोरियत पैदा करती है । 
                                           वैसे तो यह ब्लॉग अपने गांव के नाम पर आधारित कर लिखना चाहता था परन्तु मात्र एक गांव से और उस गांव से जिसके वाशिंदे खुद नेट से जुड़े नहीं होने से इस ब्लॉग के बारे में कुछ भी नहीं जानते । क्योंकर अन्यों को रुचिकर लगेगा । 
                                           मैं दूसरे ब्लॉग को पढ़कर बहुत आनंदित होता हूँ कि कितना अच्छा लिखा जा रहा है । इसी प्रकार से अनेक ब्लॉग बेसिरपैर के भी लिखे जा रहे है । एकदम सामयिक विषय पर लिखी गई बात की अवधि बहुत कम समय की हो सकती है जबकि मन से जुडी विषयों पर चर्चा हमेशा के लिए जीवंत बनी रहती है । कभी-कभी सार्वकालिक भी हो जाए तो आश्चर्य नहीं । 
                                            
                                             

रविवार, 2 मार्च 2014

सारनाथ में चौखण्डी स्तूप 
सारनाथ में चौखण्डी स्तूप एक बहुत अद्भुत दृश्य है । इसका लिया गया चित्र बहुत मनोहारी है । 
चौकण्डी स्तूप का पूर्ण स्वरुप 
चौखण्डी स्तूप के पास खड़े होकर लिया गया चित्र 


सारनाथ भ्रमण 
                                         सलेमपुर से बनारस आते समय सारनाथ रेलवे स्टेशन पर जब ट्रेन पहुँची तथा पत्नी के सारनाथ के बारे में पूछने पर मैंने मन में निश्चय कर लिया था कि इन्हें  तथा अनूप को सारनाथ भ्रमण कराऊंगा । संयोग से समय ने मौक़ा दे दिया । सबसे प्रथम प्राथमिकता काशी विश्वनाथ मंदिर के दर्शन करके दशास्वमेध घाट से  ऑटो लेकर सीधे सारनाथ पहुँच गए । सारनाथ की यात्रा भी बहुत रोचक रही । 
गौतम बुद्ध की अस्सी फीट भव्य प्रतिमा  का मुख्य गेट 

मुख्य गेट के भीतर प्रथम प्रवेश द्वार 

भव्य प्रतिमा का विहंगम दृश्य 

भव्य प्रतिमा के सामने खड़े होकर लिया गया चित्र 

 गंगा जी में नॉव पर बैठे हुए गंगा जी के विभिन्न घाटों को देखने का आनंद लेते हुए 



गंगा जी के उस पार जाकर स्नान का आनंद उठाते हुए 




वाराणसी में गंगा स्नान, काशी विश्वनाथ मंदिर  दर्शन, सारनाथ भ्रमण 

                     बहुत दिनों से परिवार के साथ गंगा स्नान तथा काशी विश्वनाथ मंदिर में भोले बाबा के दर्शन की इच्छा थी जो इस बार पूरी हो सकी । सबसे ज्यादा आनंद गंगा स्नान का रहा । यद्यपि सर्दी होने की वजह से गंगा जी में देर तक डुबकी लगाए रखना आरामदेह नहीं लग रहा था परन्तु गंगा जी में स्नान करने का अहसास बहुत आनंददायक था । उम्मीद है कि ऐसा आनंद बार-बार मिलता रहेगा । 
                सबसे पहले आप को दशास्वमेध घाट का दर्शन कराता हूँ ।  यह चित्र गंगा जी में नॉव के ऊपर से लिया गया है ।  
दशास्वमेध घाट


                                      

शुक्रवार, 28 फ़रवरी 2014

विंध्याचल  दर्शन 
                                  बहुत समय से हम लोग माँ विंध्यवासिनी के दर्शन के लिए लालायित थे । हमेशा पत्नी ताने मारती कि हम कभी भी माँ के दर्शन नहीं कर पाएंगे । संयोग से ओमशिव के शादी का अवसर आया और हमारे मन में यह विचार भी आया कि क्यों नहीं इस अवसर पर ही माँ का दर्शन लाभ उठाया जावे । थोड़ी सी मन में कसक रह गयी कि साथ में बेटी नहीं जा पायी क्योकि उसकी परीक्षा का समय भी उसी समय पर था । मौसम सर्दी का था । इसका एक लाभ और एक हानि थी । लाभ कि भीड़ नहीं थी तथा हानि कि मौसम सर्दी का होने से आरामदेह स्थिति नहीं बन पा रही थी । परन्तु एक बहुत बड़ी बात यह थी कि मेरे मित्र श्री विनोद जी यहीं पदस्थापित होने से बहुत लम्बे अर्से के बाद या यूं कहें कि छात्र जीवन के बाद उनके कार्य स्थल पर पहली बार ऐसे पावन स्थल पर उनकी उपलब्धियों के बीच मिलने का अवसर मिल रहा था । बहुत सुन्दर रहने लायक निवास स्थल का निर्माण कर लिए थे । जिससे बहुत प्रसन्नता हुई । 
                                  राजस्थान से जाने पर गंगा जी के प्रति एक अलग ही उमंग और आनंद का अहसास हो रहा था । साथ में बहुत अजीज मित्र का साथ भी मिल रहा था । 

गंगा नदी के पार जाते हुए नॉव पर विनोद जी एवं मैं 

अनूप अपनी माँ के साथ नॉव पर 

विनोद जी एवं मैं माँ के दर्शन के लिए प्रतीक्षा में 


माँ विंध्यवासिनी 
                                           माँ के दर्शन के बाद पंडित जी लोगों के येन केन दान करवा कर  धन  प्राप्ति  करने की युक्ति मन को व्यथित करने वाली हुई । वैसे ही श्रद्धालुगण मंदिर में श्रद्धा के साथ अपने अधिकतम दान की भावना के साथ जाते है । परन्तु जब उनसे व्यवसायिक दृष्टिकोण से व्यवहार किया जाता है । या यूँ कहे कि आज ही  मुर्गी को हलाल कर दो दुबारा फिर यह आये कि नहीं । इस स्थिति पर हमें अपने धर्म और व्यवस्था को और अधिक मानवीय बनाने की जरुरत महसूस होती है । योग्य को ही पूजा पाठ से सम्बंधित कर्मो की तरफ जुड़ना चाहिए । अन्यथा दलाल किस्म के लोग धर्म को बर्बाद कर देंगे ।  भगवान के दर्शन के लिए धन अनिवार्य नहीं होना चाहिए । परन्तु  अनुभव यही कहता है  कि धन से   भगवान का दर्शन मंदिरों में आसान हो जाता है ।  


अष्टभुजा माँ 

कालीखोह की काली माँ 

अनूप पूजन सामग्री निहारते हुए 

बुधवार, 26 फ़रवरी 2014

 मैरवा में हरेराम बाबा स्थान 

                                   हमारे परिवार में यज्ञोपवीत  कराने के लिए मैरवा में हरेराम बाबा का स्थान नियत है । आज से लगभग पैतालीस वर्ष पहले मैं बाबा के स्थान पर गया था । उसके बाद बाबा के स्थान पर विशेष रूप से दर्शन हेतु जाने का सौभाग्य नहीं मिल पाया था । लेकिन अनूप का जनेऊ (यज्ञोपवीत ) वहीं होना नियत होने से दर्शन लाभ मिलने की उम्मीद पूरी थी । बेटे के जनेऊ के अवसर पर यह ईच्छा पूरी हुई । जनेऊ के अवसर पर गांव एवं कुटुम्ब के सभी आत्मीयजनों का स्नेह एवं आशीर्वाद प्राप्त हुआ । 
                                जनेऊ में पंडित जी का दायित्व विनोद जी ने निभाया । ठाकुर (नाऊ) का कर्तव्य सदा स्नेही एवं सहयोगी फुलेना ने पूर्ण किया । समस्त व्यवस्था को मैनेज करने का कार्य उमेश जी , उनकी पत्नी, पुत्र एवं पुत्री ने बखूबी निभाया । गांव से श्री उमेश मिश्र , श्री हरि ओम मिश्र ,श्री विवेक दुबे , श्री अवधेश दुबे,श्री दीप नारायण तिवारी , श्री रवींदर मिश्रा, श्री मोहित शामिल हुए । सम्बन्धियों में परिवार की लड़कियां आरती , अमरावती ,  सुमन एवं उनका परिवार तथा मीना शामिल हुई  । संयोग से मेरे पत्नी की बड़ी बहन जी भी आशीर्वाद देने मय संचित एवं सुप्रिया शामिल हुई । परिवार के गिरिजा भैया भी सपत्नीक एवं पुत्र संतोष के साथ गोरखपुर से सर्दी एवं शारीरिक कष्ट को झेलते हुए शामिल हुए । हमारे टोले के सभी आत्मीय एवं स्नेहीजन का मेरी माता जी के सम्बन्धों के कारण मुझे भी उसका लाभ मिला। इसी  के कारण टोले की सभी महिलायें आशीर्वाद देने के लिए इसमें शामिल हुई ।  मन को बहुत अच्छा लगा । हालांकि यह सही है कि मैं स्वयं किसी के किसी भी इस स्नेह एवं आत्मीयता को उसी रूप में निभाने की स्थिति में नहीं हूँ जिसका मुझे तकलीफ है । प्रभु की इच्छा सर्वोपरि मानने के अलावा मेरे पास अन्य विकल्प नहीं है । भगवान से सभी के लिए सुख समृद्धि की कामना करता हूँ । इस अवसर पर लिए गए कुछ तस्वीर यहाँ सभी के साथ बांटने के लिए प्रस्तुत है । 


यज्ञोपवीत की वेदी पर हवन करते हुए 


अनूप को जनेऊ पहनाते हुए 


जनेऊ के बाद हरे राम बाबा की पूजा करते हुए 


शुक्रवार, 21 फ़रवरी 2014

 प्राइवेट से सरकारी स्कूलों की प्रतिस्पर्धा 

                                             मैंने अपनी  पूरी शिक्षा सरकारी स्कूलों से ही प्राप्त की है । सरकारी स्कूल में कभी भी अलग से किसी काम के लिए अतिरिक्त धन की मांग नहीं की जाती है । परन्तु प्राइवेट स्कूल में प्रत्येक काम के लिए पहले धन की बात की जाती है , बाद में काम की । यहाँ मैं अपने गांव के स्कूल के पास में महुआबारी में खुले प्राइवेट स्कूल की बात करुँ या भाटपाररानी में चल रहे प्राइवेट स्कूल की बात करुँ । मूल बात एक ही है । प्राइवेट स्कूल में अंग्रेजी माध्यम से अध्यापन कराया जाता है । यह आज की सबसे ज्यादा मांग है । सभी यही चाहते है कि उनका नौनिहाल अंगरेजी माध्यम से शिक्षा प्राप्त कर ऊँचे ओहदे पर पहुंचे तथा आरामदेह जीवन जीये । 
                                          कहाँ गांव के स्कूल की दीवालें जीर्ण - शीर्ण, अध्यापक योग्य होते हुए भी उत्साहित नहीं हैं तथा साधनों की कमी है । जबकि प्राइवेट स्कूल की दीवालें चमकती हुई है तथा स्कूल में ड्रेस कोड में दमकते बच्चे बरबस ही अपनी ओर सभी का ध्यान आकर्षित कर लेते हैं । भले ही अध्यापक जिन्हे सरकारी स्कूलों में स्थान नहीं मिल पाया है । उन्हीं के भरोसे हम अपने नौनिहालों को  समर्पित कर इठलाते हैं । मेरा यह मंतव्य कत्तई नहीं है कि प्राइवेट स्कूल किसी मायने में सरकारी स्कूलों से पीछे हैं । परन्तु अंधी दौड़ में चाहे - अनचाहे हम सभी शामिल हो जाते हैं । 
                                                    वैसे हमारे गांव के पास में महुआबारी में प्राइवेट में संचालित स्कूल की बिल्डिंग काफी अच्छी तथा सुविधाएं भी बेहतर बताई जाती हैं । गांव के बहुत सारे बच्चे इस स्कूल में पढते है । ज्यादा सक्षम परिवार के बच्चे भाटपाररानी में प्राइवेट स्कूल में पढने जाते हैं । ऐसी स्थिति में गांव का स्कूल क्यों कर बेहतर हो सकेगा ? क्योंकि मेधावी बच्चे  पहले ही बाहर के स्कूल में चले जाते है । अतः मेरा सपना कि गांव के बच्चे एक दिन दुनियां के कोने - कोने में सक्षम स्थिति में दीखे, कैसे सच हो सकेगा ? हम सभी तो इसी कारण अपने गांव को छोड़कर बाहर में जीवन यापन कर रहे है । साथ ही अपने बच्चों को भी गांव से जोड़ नहीं सके है । अतः हमारा तो इस बाबत सोचना भी गलत है । 

महुआबारी में प्राइवेट स्कूल की दमकती दीवालें 


महुआबारी स्थित प्राइवेट स्कूल 


महुआबारी स्थित प्राइवेट स्कूल 

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2014

बनकटा मिश्र गांव का प्राथमिक एवं मिडिल स्कूल 

                              आज हम लोग गांव के पूर्व में स्थित सरकारी स्कूल के  बारे में चर्चा करेंगे । जब हम लोग पढते थे तब यह प्राइमरी स्कूल था । वर्तमान में यह स्कूल क्रमोन्नत होकर मिडिल स्कूल हो गया है । पूर्व में इस स्कूल में आस-पास के कई  गांवों के छात्र छात्राएं पढ़ा करते थे । परन्तु अब आस-पास में अनेक स्कूल खुल गए हैं । अब यह स्कूल बनकटा मिश्र तथा बेदवलिया गांव के बच्चों की शिक्षा की जरूरतों को पूरा कर रहा है । 
                              यह विद्यालय मेरा अल्मा मेटर है । मेरे जीवन की नींव इसी विद्यालय से शुरू हुई । इसकी यादें अविस्मरणीय रहेंगी । इसको बहुत फूलता फालता देखने की इच्छा है ।  यहाँ के छात्रों को दुनियाँ के अनेक स्थानों  पर  महत्त्वपूर्ण क्षमता में काम करते  और अपना स्थान  बनाते देखने की दिली इच्छा है । हमारे गांव के बच्चों के  लिये शिक्षा के अतिरिक्त अन्य विकल्प बहुत   सीमित है । 


प्राथमिक विद्यालय बनकटा मिश्र, जिला देवरिया    



पूर्व माध्यमिक (मिडिल)  विद्यालय बनकटा मिश्र, जिला देवरिया    

बनकटा मिश्र, जिला देवरिया  के सरकारी स्कूल का विहंगम दृश्य



























दीर्घेश्वर मन्दिर रवनी, मझौली राज, सलेमपुर, जिला देवरिया 
                        अपने बचपन के बाद मुझे याद नहीं है कि मैंने इस मन्दिर को बहुत अच्छे से देखा हो । इस मन्दिर के बारे में बचपन की याद बहुत नोस्टाल्जिक (अतीत को याद करने की भावना) कर देती है । हम लोग पूरे साल अरन्डी के बीज इकट्ठा करते । इसके लिये हम लोग अरन्डी के बीज को खेल- खेल में एक दूसरे से जीतते एवम इकट्ठा करते । रवनी के शिव मन्दिर पर शिवरात्रि के अवसर पर मेला लगता था । सब लोग उसमें जाते थे । हम लोगों को घरवालों से कुछ पैसे मिल जाते तथा कुछ पैसे इस अरन्डी को बेचकर प्राप्त कर लेते । 
                         मेले में हम लोग बासुरी (पिपिहरी) को खरीदते । वापसी के समय पर पिपिहरी बजाते आते उस खुशी को आज हम किसी भी खुशी से अतुलनीय पाते हैं । आज उस स्थान का विकास भी आधुनिक तरीके से हो गया है । आज बहुत सालों बाद गया तो वहां टीले जैसे ऊचे स्थान पर चढने की जरुरत ही नहीं हुई और न हीं टीले पर से नीचे उतर कर मन्दिर मे जाने का रोमांच मिला । हालांकि आज हम कह सकते हैं कि पहले से आरामदेह हो गया है ।
                           इसका मतलब यह नहीं है कि मैं आज के हुए विकास से सहमत नहीं हूं । निश्चित रुप से विकास से अतीत को उसी रुप में पूरी तरह से संजोया नहीं जा सकता हैं । आज यह मन्दिर पूरे इलाके के लिये एक दर्शनीय स्थल के रुप में विकसित हो गया है । शिवजी की कृपा इसी तरह और स्थलों को भी प्राप्त होती रहे । आइए आज इस मन्दिर का दर्शन करें ।  

दिर्घेश्वर  मंदिर , रवनी , मझौली राज , सलेमपुर , देवरिया 


दिर्घेश्वर  मंदिर , रवनी , मझौली राज , सलेमपुर , देवरिया   

शिव मंदिर बनकटा मिश्र 
                   जैसा कि मैंने आप को पिछले पोस्ट में गाँव में सभी दिशाओं में मंदिरों के निर्माण एवं उसके सामुदायिक महत्त्व के बारे में अवगत कराया था । इस पोस्ट में मैं आप को गांव के उत्तर दिशा में विकसित हो रहे शिव मंदिर के बारे में बताएँगे । गांव के ही तिवारी जी अपने रिटायरमेंट के बाद अपना सब कुछ छोड़ कर नदी किनारे धूनी लगा कर मंदिर निर्माण की सपने जैसी लगने वाली आत्म मुक्ति की धुन में लग गए और आज इस पर गांव के सभी लोगों का विशेष ध्यान हो गया है । गांव की सामूहिकता के विकास के लिए यह मंदिर एक केंद्र बिन्दु का स्थान प्राप्त कर लिया है । 
                      आइए आज हम लोग इस मंदिर और इसकी  अदभुत चमत्कारिक मूर्तियों का दर्शन स्वयं करें । 


हनुमान जी की मूर्ति 


राधा कृष्ण की मूर्ति 




शिव जी की मूर्ति 



   शिवजी की मूर्ति 


शुक्रवार, 14 फ़रवरी 2014

बनकटा मिश्र से भटनी वाया दनउर  के लिए छोटी गंडक पर बना पुल का महत्त्व 


                           पिछली पोस्ट में मैंने आप को गांव के पश्चिम मे विकसित किये जा रहे साई बाबा के मन्दिर का जिक्र किया था । इस बार मैं आप को मन्दिर के पास से गुजर रहे नव विकसित परन्तु भविष्य के लिये असीम संभावनाओं को अपने गर्भ में समेटे हुए बनकटा मिश्र एवम भटनी के बीच वाया दनउर के लिये छोटी गन्डक नदी पर बने पुल के बारे में चर्चा करुंगा ।

                          आज से पच्चीस तीस वर्ष पहले किसी ने सोचा भी नहीं था कि आज हम लोग रोड से बनकटा मिश्र से भटनी की यात्रा अपने मोटरसाइकिल या जीप कार से कर सकेंगे ।  परन्तु यह आज की वास्तविकता है । आज हम कहीं से आवें तो भटनी से अपने साधन से और शीघ्र ही सार्वजनिक साधन से भी अपने गांव बनकटा मिश्र आसानी से आ सकते हैं । 
                           इस विकास से भविष्य में नये आयाम भी जुड़ेंगे । पहले बनकटा मिश्र सीधे भाटपार रानी एवम सलेमपुर से जुड़ा था । गांव का सीधा सम्पर्क दनउर, नोनापार एवम भटनी से नहीं था । परन्तु अब हो जायेगा ।
                            इस पक्ष की बानगी पुल के शुरु होते ही अनेक ठेलों एवम दुकानों के चालू हो जाने से ही लग जाती है । विकास का यह पक्ष बहुत सुन्दर लगता है । हमें यह कल्पना करने से ही रोमांच हो जाता है कि कभी हम सब्जी लेने के लिये एवम चाय पीने के लिये महुआबारी जाते थे तथा वहां की अधिकांश सब्जियों के खरीददार हमारे गांव के लोग हुआ करते थे ।   

पुल की झलकियां 


पुल के उपर बांयें से दांयें  ब्लोगर , ब्लोग्गर के मामा जी के सुपुत्र श्री रामप्रकाश शुक्ल जी, श्री उमेश मिश्र जी, श्री अवधेश दुबे जी



 पुल के पहले बनकटा मिश्र गांव के पश्चिम में कभी खाली रहे स्थान की व्यावसायिक उपयोग की शुरुआत होते देखते ब्लोगर , ब्लोग्गर के मामा जी के सुपुत्र श्री रामप्रकाश शुक्ल जी, श्री उमेश मिश्र जी, श्री अवधेश दुबे जी


        पुल के उपर से लिया गया विहंगम दृश्य जिसमें बड़का गांव के पास का रेल का पुल दीख रहा है



पुल के उपर से लिया गया पास का दृश्य

शनिवार, 8 फ़रवरी 2014

बनकटा मिश्र के शिरड़ी के साई बाबा मन्दिर

साईंबाबा की  मंदिर में  स्थापित वास्तविक छवि 


साईबाबा मंदिर का बोर्ड 

निर्माणाधीन  साईबाबा मंदिर बनकटामिश्र 


साईबाबा के सामने श्रद्धानत ब्लॉगर एवं आदरणीय अवधेश दूबे जी 

       मै बहुत समय के बाद गांव गया तथा वहां की परिस्थितियों एवम आधारभूत संरचनाओं के विकास को देखा और महसूस किया कि समय अपना स्वाभाविक विकास का रथ चला रहा है ।
       धार्मिक क्षेत्र में एकमात्र आस्था का केन्द्र रहे रैनाथ ब्रह्म महाराज के अतिरिक्त दो अन्य मन्दिर का भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान बनता जा रहा है । उनमें से गांव के पश्चिम में स्थित शिरड़ी के साई बाबा मन्दिर भी एक है । वर्तमान में बहुत ही व्यवस्थित रुप से दोनों समय सुबह एवम शाम को पूजा एवम आरती होती है जिसका माइक पर प्रसारण भी होता है जिसमें गांव के लोग श्रद्धा से शामिल होते हैं । गांव के लोगों के लिये एक और अच्छा सा प्लेटफ़ार्म जिसमें रचनात्मक उर्जा का सदुपयोग हो सकता है । सभी प्रोमोटर्स को साधुवाद एवम शुभकामनायें ।