सोमवार, 26 दिसंबर 2011

गाँव की सर्दी

                            यहाँ झालावाड में रहते हुए  देवरिया जिले के बनकटा मिश्र गाँव की ठंढ को याद करते हुए झालावाड का नरम मौसम बहुत अच्छा लगता है | परन्तु जब गर्मी आती है तो गाँव की नमीयुक्त आर्द्र मौसम तथा सुहाना परिवेश की याद भी सताने लगती है | इसे क्या कहेंगे? कहते है की  जहाँ रहो वहीं की सबकुछ अच्छी लगनी चाहिए | यह निष्ठा की बात है | क्या मन की बात करना निष्ठा से परे हो जाना होता है क्या? बहुत बार बहुत कुछ ऐसा मन में आता है की ऐसा कुछ किया जाये जो तत्काल बहुत अच्छा लगे परन्तु उसका परिणाम सुखद प्रतीत नहीं होने से मन पर संयम का दबाव महसूस होने लगता है | विशेष रूप से गाँव में गुजारे बचपन के समय का क्या कहना? परन्तु उसे न तो वापस लाया जा सकता है और न ही उसके अनुसार निर्द्वंद्व होकर जिया ही जा सकता है |

शनिवार, 24 दिसंबर 2011

वर्षांत का आनंद

प्रत्येक वर्ष का अंत होता है तथा वर्षांत अपने बहुत कुछ समेटे रहता है|| कभी -कभी वर्षांत  की बेसब्री से इंतजारी रहती है तो कभी -कभी लगता है की जल्दी ही  इससे  छुटकारा  मिल  जाये तो अच्छा है| परन्तु वर्षांत निश्चित रूप से समय की इकाई के हिसाब से एक महत्त्वपूर्ण पड़ाव के रूप अपना स्थान निश्चित कर लेता है| इसी दृष्टि से वर्ष २०११  अपना स्थान बना पाया है | खैर अपने जीवन में एक मुकाम और व्यतीत हुआ | भविष्य में देखे की इस वर्ष को किस रूप में याद किया जायेगा |

मंगलवार, 20 दिसंबर 2011

अपना भाग्य

  1. चुनाव सम्पन्न कराने के बाद उम्मीद थी कि वर्षांत आरामदेह तरीके से गुजरेगा परन्तु तत्काल दूरभाष से आदेश प्राप्त हुआ कि चुनाव अपूर्ण होने के कारण शेष रहे संचालको के खाली स्थान के लिए चुनाव प्रक्रिया को पूर्ण कराने का कार्य किया जावे |
  2. इस प्रकार से अपने भाग्य में आराम नसीब नहीं है |
  3. अनेक   बार कुछ अच्छे संयोग भी प्राप्त होते हैं जिसकी खुशी निराली ही होती है  |  यही स्थिति इस प्रकार के आदेश से हुई |

रविवार, 18 दिसंबर 2011

सहकारिता का चुनाव

 ७ दिसम्बर से १७ दिसम्बर तक मै गाँव में रहकर सहकारी समितियों के चुनाव करवाए | चुनाव  के दौरान  गाँव स्तर पर लोगों में जागरूकता तथा परस्पर प्रतिस्पर्धा एवं सामंजस्य के अनेकों अनूठे उदाहरण देखने को मिले | कहीं तो लोग चुनाव राजनीतिक सोच के आधार पर लड़े तो कहीं पर अज्ञानता के कारण चुनाव को केवल व्यक्तिगत जीत हार का कारण मानकर लोग चुनाव में भाग लिए | इससे चुनाव की भावना शून्य होकर रह गयी | कही पर लोग हिंसा का सहारा लिए तो कहीं पर जाती को मुख्य मानकर उससे प्रेरित  होकर अपने मताधिकार का प्रयोग किये |    इतने व्यापक स्तर पर होने वाले चुनाव से लोग अपनी  मूल नीति एवं अपनी प्राथमिकता को तय कर सकते थे परन्तु इसका सर्वथा अभाव दिखा | लोगों को इस बात का भी परवाह नहीं था की उनकी सहकारी समिति का कार्यालय तो कम से कम रोज खुले इस बात को आधार तो जरुर बनायें | इसके विपरीत लोग इस तथ्य को ज्यादा महत्व दिए की उनके गाँव का अध्यक्ष बने, उनके ही गाँव का आदमीं व्यवस्थापक रहे | भले ही सहकारी समिति पर ताला लगा रहे | सबसे ज्यादा तो शिकार योग्यता रही जिसका कहीं कोई नाम नहीं ले रहा था | ऋण वितरण तथा खाद-बीज की व्यवस्था को तो लोग केवल सरकार का काम समझ कर अपना कोई रोल होने एवं उसमे अपनी कोई भूमिका होने की चर्चा ही नहीं कर रहे थे |