वैसे तो मेरे ब्लोग्ग को कोई पढने वाला नहीं हैं। इसलिये मैं भी अपेक्षाओं के किसी दबाव में नहीं रहता हूं । और साथ ही मुझे स्वयम से भी ज्यादा अपेक्षा नहीं होती है । लेकिन अन्यों के अच्छे ब्लोग्ग को पढ कर बहुत प्रसन्नता होती हैं । निश्चित रुप से अपने ब्लोग्ग को उसी तरह से सुरुचिपूर्ण, तथ्यपरक, वस्तुनिष्ठ और सबसे अहम बात कहूं तो कालजयी होते देखने की कपोलकल्पनायें मन के किसी कोनें में हिलोरे मारते मह्सूस करता हूं ।
अपने मन में नियमित रुप से ब्लोग्ग लिखने की ख्वाहिश, योग्यता और परिस्थिति नहीं है। परन्तु अन्यों के अच्छे ब्लोग्ग को पढने पर मन को बहुत खुशी मिलती है। न दैन्यम न पलायनम एक ऐसा ही ब्लोग्ग है. उसके पहले मैने दालान नामक एक ब्लोग्ग को पसंद किया था परन्तु उसके ब्लोग्गर ने फ़ेसबुक पर नियमित रुप से संक्षिप्त सी टिप्पणी लिखने का मन बना कर दालान पर लिखना बंद सा कर दिया।
यहां मैं यह कहना चाहता हूं कि अरुचिकर लिखने से अच्छा पढना ज्यादा श्रेयष्कर लगा। इसके बाद आता है कि क्या लिखा जाये । मुण्डे-मुण्डे मतिर्भिन्ना के अनुसार विषयों की विविधता सामान्य बात है । मैंने सामयिक विषय को बहुत सामान्य विषय पाया है । परन्तु उसका विश्लेषण सतही, लकीर के फ़कीर वाला ही पाता हूं । यहां मैं वैज्ञानिक दृष्टिकोंण को शामिल किये जाने पर जोर देना चाहता हूं । असल में वैज्ञानिक होना लकीर से हट कर चलने के समान है जिसे हम क्रान्तिकारी कदम के रुप में भी पाते हैं। बहुत मुश्किल होता है जब हमारे विचार लगभग सबसे अलग और अकेला होता है।