रविवार, 9 मार्च 2014

व्यक्तिगत बनाम सार्वजनिक 
                                      मैंने यह ब्लॉग किसी सोच के साथ लिखने को लेकर शुरू नहीं  किया था बल्कि यह अपने में नया अहसास महसूस करने के लिए किया था कि एक साधारण सा  व्यक्ति भी अपनी बात सार्वजनिक रूप से व्यक्त कर सकता है और लोग उसे पढ़ेंगे । यहाँ मैं यह स्पष्ट कर दूँ कि मुझे अपनी बेटी की बात बहुत अच्छी लगी कि अगर विस्तृत फलक या यूं कहे कि सार्वजनिक मुद्दे की बात हमेशा व्यक्तिगत सरोकारों से ज्यादा जोड़ने वाली होती है । भले ही तात्कालिक रूप से व्यक्तिगत बात अच्छी  लगे लेकिन लम्बे समय में वह बोरियत पैदा करती है । 
                                           वैसे तो यह ब्लॉग अपने गांव के नाम पर आधारित कर लिखना चाहता था परन्तु मात्र एक गांव से और उस गांव से जिसके वाशिंदे खुद नेट से जुड़े नहीं होने से इस ब्लॉग के बारे में कुछ भी नहीं जानते । क्योंकर अन्यों को रुचिकर लगेगा । 
                                           मैं दूसरे ब्लॉग को पढ़कर बहुत आनंदित होता हूँ कि कितना अच्छा लिखा जा रहा है । इसी प्रकार से अनेक ब्लॉग बेसिरपैर के भी लिखे जा रहे है । एकदम सामयिक विषय पर लिखी गई बात की अवधि बहुत कम समय की हो सकती है जबकि मन से जुडी विषयों पर चर्चा हमेशा के लिए जीवंत बनी रहती है । कभी-कभी सार्वकालिक भी हो जाए तो आश्चर्य नहीं । 
                                            
                                             

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