शनिवार, 8 अगस्त 2020

छठ पूजा की सभी आत्मीयजन को शुभकामना एवं बधाई।

 

          


राजस्थान के दक्षिण पूर्व के सुदूर अंचल में लंबे समय तक रहने के कारण हम लोगों को कई बार अपने जन्म स्थान से दूर रहने की याद सताने लगती है। भाद्रपद के महीने में आने वाला छठ का त्यौहार इसका एक विशेष अवसर बन जाता है। इस त्यौहार की मानक शब्दावली हलषष्ठी है लेकिन हमारे गांव में छठ कहते हैं।
        यहां यह त्यौहार अपने जन्म स्थान से दूर रहने के कारण हम लोगों को एक विशिष्ट पहचान दिलाता है। राजस्थान में यह त्यौहार जनसामान्य द्वारा नहीं मनाया जाता है। इस त्यौहार पर उपयोग किया जाने वाला तिन्ना का चावल स्थानीय स्तर पर उपलब्ध नहीं होने के कारण जब भी गांव जाने का अवसर प्राप्त होता है वहीं से खरीद कर संग्रह कर लेते हैं। यहां पर अपनी तरफ के रहने वाले परिवारजन भी एक दूसरे से पूछ कर इसकी आपूर्ति कर देते हैं। अन्य सामग्री जैसे महुवा एवं इसका पत्ता, कुश(डाभ) आदि स्थानीय स्तर पर सुलभ है। वैसे कुश प्राप्त करने में थोड़ी मशक्कत करनी पर जाती है।

     इस त्यौहार पर मुझे अपने माता जी की जीवंतता की याद एकदम ताजा हो जाती है। अपने बच्चों में इस तरह की सांस्कृतिक विरासत की जड़ें विकसित करने में मां का अनमोल योगदान रहा है। परिवार में भोजपुरी को बोलचाल में सहज बनाये रखने में भी उनकी महती भूमिका रही है। आज मैं उनके कारण ही स्वयं को तथा अपने परिवार को अपने जन्म स्थान से दूर रहने के बावजूद जुड़े रहने तथा दूर नहीं होने का एहसास बने रहने के लिए बहुत हद तक प्रेरणा का स्रोत मानता हूं।         



रविवार, 26 जुलाई 2020

सेवानिवृत्ति का एक साल पूर्ण 


मुझे राजकीय सेवा से सेवानिवृत्त हुए 1 साल पूरा हो चुका है। सेवानिवृत्ति से पूर्व सेवानिवृत्त होने का अनुभव करने की इच्छा बहुत होती थी। ऐसा लगता था कि सेवानिवृत्त व्यक्ति का जीवन एक अलग ही किस्म का बहुत आनंददायक होता है जिसमें बेफिक्री और आनंद की बहुतायत होती है। किसी किस्म का कोई दबाव नहीं होता है। क्योंकि राजकीय सेवा में रहते हुए हर समय बैठक, लक्ष्य की पूर्ति, उच्चाधिकारियों के समय-समय पर निर्देश, सूचनाएं, जनता से जुड़े हुए विभिन्न संवेदनशील मुद्दे कभी-कभी नियमों के अनुकूल तथा कभी-कभी नियमों के प्रतिकूल परंतु किसी भी तरीके से उसको पूर्ण करने का दबाव। इन सब दबावों से मुक्ति का एक ही इलाज सेवानिवृत्ति ही प्रतीत हो रही थी जिसको प्राप्त करना बहुत ज्यादा समय लगने वाला लगता था। आज इसको प्राप्त हुए 1 वर्ष हो चुका है। 
अब इस पर मंथन करने पर इस तरीके की किसी उत्तेजना या विशेष आनंद की अनुभूति शेष नहीं रह गई है। ऐसा लगता है कि यह जीवन का सामान्य क्रम है। जैसे शिक्षा के बाद नौकरी में आने की प्रति जो उत्कंठा हुआ करती थी वह नौकरी प्राप्त करते ही पूर्ण हो गई। इसी प्रकार नौकरी से सेवानिवृत्त होने की सेवानिवृत्त होने के बाद पूर्ण हो गई।
राजकीय सेवा में रहते हुए बहुत सारी योजनाएं बनाई थी कि रिटायरमेंट के बाद क्या-क्या करेंगे। कहां-कहां जाएंगे। रिटायरमेंट का पूरा एक साल बीतने में ऐसा लगता है कुछ समय ही नहीं लगा बहुत जल्दी 1 साल पूरा हो गया। वैसे इसमें कोविड-19 का भी बहुत योगदान है। इसने सभी को घरों में कैद करके एक विशेष रूटीन में बांध दिया और उसी में सभी को जीने के लिए मजबूर  कर दिया। 
पूरे साल के लिए बनाई गई अनेकों पूर्व नियोजित यात्राओं को स्थगित करना पड़ा तथा उनके टिकट कैंसिल कराने पड़े एवं अनेक सारी योजनाओं से जुड़ी इच्छाओं की पूर्ति अधूरी ही रह गई। मुंबई दर्शन तथा उत्तराखंड के चारों धाम की यात्रा इसमें विशेष रूप से नहीं कर पाने का मलाल रह गया है देखें भगवान कब  इसे पूरा कराते हैं।