बुधवार, 24 अगस्त 2016

अभी हाल में मुझे अपने गांव जाने का अवसर प्राप्त हुआ । वहां संयोग से 15 अगस्त को बाबा रैनाथ ब्रह्म का वार्षिक पूजन समारोह था । बहुत लम्बे अन्तराल के बाद मुझे इस अवसर पर गांव में रुकने का अवसर मिला । अनेक लोगों से मिलने का दुर्लभ अवसर मिला । कुछ पारिवारिक जरुरतों के कारण मैं पर्याप्त समय नहीं दे पाया । ऐसे समय में इस बात का अहसास हो ही जाता है कि जीविका के लिये गांव से दूर जाना क्या होता है । लम्बे समय तक जीविका के लिये दूर रहने पर वहां की स्थानीय परिस्थितियों के नजदीक होने से अपनी पत्नी, बच्चे तक गांव के इस लगाव से दूर हो जाते हैं । अनेक अवसरों पर अपने बीबी-बच्चे तक हमारी भावनात्मक लगावों को समझ नहीं पाते जिससे असन्तोष होता है । हालांकि गांव से बाहर जाने और जीविकोपार्जन करने से ही जीवन की भौतिक जरुरतें पूरी होती हैं ।
आज मैं अपने गांव के युवा साथियों द्वारा फ़ेसबुक पर बनायी गई बनकटा मिश्र नाम के ग्रुप की चर्चा भी करुंगा । ग्रुप के कारण गांव में तथा गांव से दूर रहने वाले लोगों के लिये यह ग्रुप एक अच्छे मंच की भूमिका अदा कर रहा है जिससे जुड़कर लोग अपने को गांव की वर्तमान गतिविधियों से जुड़ा हुआ महसूस करते हैं तथा अपडेट हो जाते हैं ।
यहां मैं यह भी उल्लेख करना चाहूंगा कि इस मंच को और अधिक उपयोगी बनाया जा सकता है । इस मंच पर अधिकाधिक बातें धार्मिक ही होती हैं । बाबा रैनाथ ब्रह्म की पूजा-अराधना, साईं बाबा, शिव मन्दिर, महावीर मन्दिर आदि में पूजा अर्चना आदि । वैसे तो यह भी सच है कि गांव के ज्यादा लोगों को इससे ही मतलब होता है । इन्हीं बातों से मनोरंजन होता है । परन्तु आज के युग को देखें तो इसके साथ अन्य पक्षों का इसमें शामिल होना भी आज की महती आवश्यकता है ।
आज के समय में इस मंच को शिक्षा एवम कौशल से जोड़ने पर गांव के युवाओं को एक अच्छी दिशा मिल सकती है । सभी युवाओं का अपना डिजिटल पता जैसे इमेल होना अति आवश्यक है । टाइप करना अक्षर ज्ञान होने के समान है । वर्ड और एक्सेल का ज्ञान भी इसी श्रेणी में वर्गीकृत किये जाने योग्य है । कम्प्यूटर में कोडिंग की शुरुआत योग्य एवम वरिष्ठ बच्चों के सहयोग से किया जा सकता है । बच्चों में न्यूनतम योग्यता अर्जित करने का यह एक अच्छा मंच भी हो सकता है ।

इसमें कोई दो राय नहीं है कि पूर्वांचल के माता-पिता अपने बच्चों के शिक्षा पर अपनी क्षमता से बहुत अधिक खर्च करने को तत्पर रहते हैं । इस कार्य में अपना गांव वैसे भी अग्रणी है । भले ही माता-पिता की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं हो परन्तु वह अपने बच्चे की शिक्षा पर व्यय करने में कोताही नहीं बरतता है । जरुरत है इस तरह के संस्कृति के विकसित करने की । आज के नौनिहाल इन्टरनेट पर उपलब्ध दूषित, घटिया जैसे पोर्न, हैकिंग आदि की तरफ़ जल्दी और ज्यादा आकर्षित हो जाते हैं । अगर इन्टरनेट और योथ बनकटा मिश्र ग्रुप जैसे ताकतवर मंच का उपयोग नौनिहालों को सशक्त बनाने में उपयोग हो सके तो कितना अच्छा होगा । बच्चों को अपने शिक्षा के प्रारम्भिक सोपान पर ही ऐसा अवसर मिले तो उनमें आत्म विश्वास बढ़ेगा । इस दिशा में हमारे गुरुजन, उच्च शिक्षित बच्चे शुरुआती पहल कर सकते हैं । गांव से बाहर निकल कर शिक्षा प्राप्त कर रहे अथवा जीविकोपार्जन कर रहे युवा अपने अनुभवों को अपने कनिष्ठ साथियों के साथ शेयर करें तो उनका अच्छा मार्गदर्शन होगा । बहुत अच्छा होने पर यह एक मिसाल भी बन सकता है |

मंगलवार, 9 अगस्त 2016

बहुत दिनों बाद आज फिर से इस ब्लोग्ग पर आया हूं । पिछले काफ़ी समय से कुछ लिखने की ईच्छा होती है । परन्तु अन्य सामयिक विषय के कारण लिखना स्थगित हो जाता है ।
यहां मैं यह भी उल्लेख करना उचित समझता हूं कि गत सर्दियों में मैंने सपरिवार दक्षिण भारत की यात्रा की थी जो अनुभव बढ़ाने के लिये तो पर्याप्त थी परन्तु मन भर नहीं पाया । तिरुपति, चेन्नै, महाबलीपुरम, कोयम्बटूर, उटकमन्ड, मदुरै, रामेश्वरम, कन्याकुमारी, कोवालम बीच, एलेप्पी आदि स्थानों की सरसरी तौर पर यात्रा की गई । बेटी की पढ़ाई अगर बाधक नहीं होती तो सर्दियों में और अधिक समय तक दक्षिण के सुखद गुनगुने तापमान का आनन्द लिया जाता ।

खैर यह रही पिछले दिनों की बात । वर्तमान में मुझे अपने माता-पिता के पिन्डदान करने की चिर प्रतीक्षित अभिलाषा पूरी करने की तीव्र उत्सुकता है । मैं जितनी भी जानकारी जुटाने की कोषिश कर सकता हूं कर रहा हूं । परन्तु अनेक बातें हैं जो मन को तसल्ली नहीं दिला पा रही हैं । पिन्डदान का कर्मकान्डी पक्ष, आध्यात्मिक पक्ष के साथ-साथ पारिवारिक और वैचारिक स्तर पर भी चुनौतियों का सामना करना पर रहा है । क्या तरीका रहे जिससे सभी सन्तुष्ट रहें । पिन्डदान केवल पुत्र के करने से नहीं हो सकता है जबतक कि सभी लोगों का समवेत स्वर अनुकूल नहीं हो । पारिवारिक स्तर पर चल रही व्यवस्था भी बाधित नहीं होनी चाहिये यथा बच्चों की शिक्षा ।  गया से जुड़ी जानकारियां भी जुटानी पड़ रही है ।  इसी उहापोह में समय व्यतीत हो रहा है ।