शनिवार, 4 अगस्त 2012

भावनाओं का अतिरेक

 आज बहुत दिनों के बाद मैं पुनः अपने गांव के ब्लोग्ग पर लिखने के लिये समय निकाल पा सका हूं । अनेक अवसरों पर मुझे गांव बहुत महत्त्वपूर्ण लगता है । लेकिन कुछ वास्तविक अवसरों पर जब वित्तीय जरुरतें भावनाओं पर भारी पडती हैं तब नौकरी और धन गांव की याद को गौण कर देती हैं ।
विभिन्न अवसरों पर जैसे बीमारी, शिक्षा आदि की जरुरतें पूरी करने के लिये धन कितना महत्त्वपूर्ण होता है इसका बखान करने की जरुरत मैं महसूस नहीं करता हूं ।
क्या उपरोक्त परिस्थितियों में कोई मुझे मार्गदर्शन कर सकता है कि गांव की याद के उपर जीवन की मूलभूत आवश्यकता से जुडी बातें क्यों इतना महत्त्वपूर्ण हो जाती है कि हमें बचपन की सबसे महत्त्वपूर्ण याद से समझौता करने में हिचक नहीं होती है ।
मैंने बहुत लोगों को देखा है जो गांव की याद करते-करते अपने बुढापे को गांव से बहुत दूर बिताते हैं तथा अपना अन्तिम सांस उसी अधूरी अतृप्त अवस्था में लेकर महाप्रयाण कर जाते हैं । 

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