रविवार, 18 दिसंबर 2011

सहकारिता का चुनाव

 ७ दिसम्बर से १७ दिसम्बर तक मै गाँव में रहकर सहकारी समितियों के चुनाव करवाए | चुनाव  के दौरान  गाँव स्तर पर लोगों में जागरूकता तथा परस्पर प्रतिस्पर्धा एवं सामंजस्य के अनेकों अनूठे उदाहरण देखने को मिले | कहीं तो लोग चुनाव राजनीतिक सोच के आधार पर लड़े तो कहीं पर अज्ञानता के कारण चुनाव को केवल व्यक्तिगत जीत हार का कारण मानकर लोग चुनाव में भाग लिए | इससे चुनाव की भावना शून्य होकर रह गयी | कही पर लोग हिंसा का सहारा लिए तो कहीं पर जाती को मुख्य मानकर उससे प्रेरित  होकर अपने मताधिकार का प्रयोग किये |    इतने व्यापक स्तर पर होने वाले चुनाव से लोग अपनी  मूल नीति एवं अपनी प्राथमिकता को तय कर सकते थे परन्तु इसका सर्वथा अभाव दिखा | लोगों को इस बात का भी परवाह नहीं था की उनकी सहकारी समिति का कार्यालय तो कम से कम रोज खुले इस बात को आधार तो जरुर बनायें | इसके विपरीत लोग इस तथ्य को ज्यादा महत्व दिए की उनके गाँव का अध्यक्ष बने, उनके ही गाँव का आदमीं व्यवस्थापक रहे | भले ही सहकारी समिति पर ताला लगा रहे | सबसे ज्यादा तो शिकार योग्यता रही जिसका कहीं कोई नाम नहीं ले रहा था | ऋण वितरण तथा खाद-बीज की व्यवस्था को तो लोग केवल सरकार का काम समझ कर अपना कोई रोल होने एवं उसमे अपनी कोई भूमिका होने की चर्चा ही नहीं कर रहे थे |

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