शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

सेवा काल का उत्तरार्द्ध


राज्य सेवा में रहते हुए रिटायरमेंट सन्निकट होने पर मानसिक स्थिति में परिवर्तन महसूस होने लगा है | हालांकि वित्तीय दायित्त्व का दबाव नहीं है | परन्तु अन्य शर्तों का दबाव तो है ही | रिटायरमेंट के बाद का जीवन बच्चों के सहयोग पर बहुत कुछ निर्भर करता है | बुढ़ापे में अनिश्चय और लाचारी की आशंका से सामान्यतया हर व्यक्ति सशंकित रहता है | इसीलिए भगवान् भी  बहुत याद आते है |  कभी कभी लगता  है कि बुढ़ापे में इंसान आस्तिक ज्यादा  हो जाता है | यह नजदीक से चरितार्थ होते महसूस हो रहा है |           इसी क्रम में मन में यह बात अनेकों बार आई कि हम लोग तो भगवान् की पूजा में समाधान ढूढ़ लेते है लेकिन अन्य धर्मावलम्बी किस तरह से इन्ही प्रक्रियाओं से गुजरते हैं | यहाँ मुझे यह लिखते हुए झिझक नहीं हो रही है कि अन्य धर्मों की बारीकी से हम बहुत काम वाकिफ है | अन्य लोग बुढ़ापा कैसे गुजारते है | उनके  धार्मिक जीवन का दैनिक आचार व्यवहार कैसा होता है | 




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