राजस्थान के दक्षिण पूर्व के सुदूर अंचल में लंबे समय तक रहने के कारण हम लोगों को कई बार अपने जन्म स्थान से दूर रहने की याद सताने लगती है। भाद्रपद के महीने में आने वाला छठ का त्यौहार इसका एक विशेष अवसर बन जाता है। इस त्यौहार की मानक शब्दावली हलषष्ठी है लेकिन हमारे गांव में छठ कहते हैं।
यहां यह त्यौहार अपने जन्म स्थान से दूर रहने के कारण हम लोगों को एक विशिष्ट पहचान दिलाता है। राजस्थान में यह त्यौहार जनसामान्य द्वारा नहीं मनाया जाता है। इस त्यौहार पर उपयोग किया जाने वाला तिन्ना का चावल स्थानीय स्तर पर उपलब्ध नहीं होने के कारण जब भी गांव जाने का अवसर प्राप्त होता है वहीं से खरीद कर संग्रह कर लेते हैं। यहां पर अपनी तरफ के रहने वाले परिवारजन भी एक दूसरे से पूछ कर इसकी आपूर्ति कर देते हैं। अन्य सामग्री जैसे महुवा एवं इसका पत्ता, कुश(डाभ) आदि स्थानीय स्तर पर सुलभ है। वैसे कुश प्राप्त करने में थोड़ी मशक्कत करनी पर जाती है।
इस त्यौहार पर मुझे अपने माता जी की जीवंतता की याद एकदम ताजा हो जाती है। अपने बच्चों में इस तरह की सांस्कृतिक विरासत की जड़ें विकसित करने में मां का अनमोल योगदान रहा है। परिवार में भोजपुरी को बोलचाल में सहज बनाये रखने में भी उनकी महती भूमिका रही है। आज मैं उनके कारण ही स्वयं को तथा अपने परिवार को अपने जन्म स्थान से दूर रहने के बावजूद जुड़े रहने तथा दूर नहीं होने का एहसास बने रहने के लिए बहुत हद तक प्रेरणा का स्रोत मानता हूं।